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"खेल सिर्फ चरित्र का निर्माण ही नहीं करते हैं, वे इसे प्रकट भी करते हैं." (“Sports do not build character. They reveal it.”) shankar.chandraker@gmail.com ................................................................................................................................................. Raipur(Chhattigarh) India

Thursday 24 February, 2011

धोनी के गढ़ में राष्ट्रीय खेलों का बुखार

वर्ल्ड कप क्रिकेट का रोमांच गायब, रोजाना लाखों की भीड़ जुट रही है स्टेडियम में

झारखंड से कमलेश गोगिया
गेम्स देखने उमड़ रहे हैं हजारों लोग.               -फोटो: दिनेश यदु
रांची. वर्ल्ड कप क्रिकेट की खुमारी में भले ही पूरा देश खो गया हो और लोग टीवी सेट से घंटों चिपके  रहे हों, लेकिन टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के गढ़ में इसके ठीक उलट क्रिकेट की दीवानगी पर 34वें राष्ट्रीय खेल हावी हैं। रोजाना दो से तीन लाख लोगों की भीड़ यहां के मेगा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में देखने को मिल रही है। सिर्फ रांची के शहरी ही नहीं बल्कि आस-पास के ग्रामीण इलाकों के अलावा धनबाद और जमशेदपुर के लोग भी क्रिकेट से हटकर दूसरे खेलों की दीवानगी में डूब  गए हैं।
कुछ दिन पहले की ही बात है जब महेंद्र सिंह धोनी ने 20 फरवरी को यहां मेगा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में पदक विजेताओं का सम्मान किया था, तब  पांच लाख से भी ज्यादा लोग खेलगांव से लगे मुख्य स्टेडियम में जुटे थे। धोनी की एक झलक पाने के लिए हर कोई ललायित था। इसी दौरान मीडिया में यह खबर भी प्रमुखता से सामने आई कि वर्ल्ड कप शुरू होते ही झारखंड के नेशनल गेम्स का महत्व कम हो जाएगा और सड़कें भी वीरान हो जाएंगी। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मेगा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स में बने दर्जनभर से ज्यादा खेलों के इनडोर और आउटडोर स्टेडियम में सुबह से लेकर  देर  रात तक लाखों की भीड़ जुटती है। इनमें स्कूली बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग वर्ग के लोग शामिल  होते  हैं। ज्यादातर लोग अपने  परिवार के साथ यहां आते हैं। लोगों के मनोरंजन के  लिए स्टेडियम के मुख्य द्वार के पास ही भू-तल पर कई सारे फव्वारे लगाए गए हैं जिनमें म्यूजिकल फाउंटेन भी शामिल हैं, इन्हें देखने और लुत्फ उठाने हजारों की भीड़ जुटती है और तब लगता  है  कि यह नेशनल गेम्स नहीं बल्कि राष्ट्रीय खेलों का मेला लगा हुआ है। 
झारखंड के स्थानीय लोगों की मानें तो रांची  में ऐसा पहले कभी  नहीं हुआ था और देशभर के स्टार खिलाड़ियों के बीच जो नजारा देखने को मिल  रहा है वह  काफी अद्भुत है। रांची में टेलरिंग का व्यवसाय करने वाले शहनवाज कहते हैं कि क्रिकेट का बुखार तो 26 फरवरी के बाद  ही  लोगों पर चढ़ेगा जब 34वें राष्ट्रीय खेलों का समापन  होगा। धनबाद से रांची तक खेलों का लुत्फ उठाने आए अनुज मुंडा कहते हैं कि छह बार नेशनल  गेम्स के स्थगित होने के बाद  लोगों  को काफी  इंतजार था राष्ट्रीय खेलों का और जब खेल शुरू हुए तो लोगों ने शिकवा-गिले भूलकर जमकर भागीदारी  निभाई।
 शादी, बच्चे... फिर भी दमदार है खेल
हैंडबाल की महिला खिलाड़ियों को भा गया प्रेम विवाह
अनीता राव, जूलियट लारेंस व सबनम .     -फोटो: दिनेश यदु
 रांची. झारखंड नेशनल गेम्स में हालांकि काफी कम ऐसी महिला खिलाड़ी देखने मिल रहीं  हैं जो विवाहित और बच्चों की माताएं हैं। इसके साथ ही खेल में भी उनका दमदार प्रदर्शन है। हैंडबाल में देश के आठ राज्यों की शीर्ष आठ टीमें जौहर दिखा रही हैं। इनमें सर्वाधिक तीन विवाहित महिला खिलाड़ी छत्तीसगढ़ की टीम में शामिल हैं और तीनों अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का  प्रतिनिधित्व भी कर चुकी हैं।
यह किस्सा है भिलाई की अंतरराष्ट्रीय हैंडबाल खिलाड़ी श्रीमती अनिता राव, जूलियट लारेंस और शबनम का। झारखंड नेशनल गेम्स में इन तीनों खिलाड़ियों का दमदार प्रदर्शन जारी है और ये खिलाड़ी टीम को लगातार जीत दिलाने में अहम भूमिका भी  निभा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी श्रीमती अनिता राव का विवाह करीब  डेढ़ साल पूर्व विवाह हुआ है और वे कहती हैं कि पति  व परिवार के सहयोग की बदौलत वे आज भी छत्तीसगढ़ का राष्ट्रीय खेलों में प्रतिनिधित्व कर रही हैं जो उसके लिए काफी खुशी की बात है।
शबनम बानो का विवाह करीब बेढ़ साल पहले हाकी  के राष्ट्रीय खिलाड़ी और हाकी छत्तीसगढ़ के सचिव फिरोज अंसारी के साथ  हुआ है। जूलियट लारेंस ने विवाह के  तीन साल बाद खेल शुरू किया और उसका दो साल का एक बेटा भी  है। शबनम की भी एक संतान है।  लेकिन ये तीनों खिलाड़ी अभी भी खेल  के मैदान में फिट हैं। मजेदार  बात तो  यह भी है कि इन तीनों खिलाड़ियों ने प्रेम विवाह किया है और ये कहते  हैं  कि खिलाड़ियों का प्रेम विवाह काफी सफल  होता है। इसकी एक वजह यह भी है खिलाड़ी का जीवन काफी संघर्षमयी होता है और उनमें अनुशासन के साथ-साथ एक-दूसरे का सम्मान करने और विश्वास की भावना भी  रहती  है। यह परिवार को जोड़े रखने का अहम आधार है।
बहरहाल इन तीनों खिलाड़ियों ने उम्मीद जताई कि वे छत्तीसगढ़ के लिए पदक हासिल करेंगे और जब तक वे खेल सकते हैं इस राज्य और देश का प्रतिनिधित्व करते  रहेंगे। तीनों खिलाड़ी राज्य के खेल अवार्ड हासिल कर चुके हैं और तीनों खिलाड़ी रेलवे में हैं तो तीनों उत्कृष्ट भी घोषित किए गए हैं।

छत्तीसगढ़ का सातवां पदक तय
छत्तीसगढ़ की विजेता महिला हैंडबाल टीम .           -फोटो: दिनेश यदु
महिला हैंडबाल टीम फाइनल में, सेमीफाइनल में पंजाब को हराया
रांची. झारखंड के 34वें  राष्ट्रीय खेलों में छत्तीसगढ़ ने महिला हैंडबाल  के फाइनल में पहुंचकर राज्य के लिए सातवां पदक  तय कर  ही लिया। पिछले नेशनल गेम्स में छत्तीसगढ़ को छह पदक मिले थे। छत्तीसगढ़ का फाइनल मुकाबला कल 25 फरवरी को खेला  जाएगा। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ की पुरुष टीम से पदक की उम्मीदें खत्म हो गई हैं।
छत्तीसगढ़ की महिला हैंडबाल टीम से पदक की काफी उम्मीदें थीं और इन उम्मीदों पर राज्य की टीम सौ फीसदी खरी उतरी। हैंडबाल के मुकाबले यहां मेगा स्पोर्ट्स काम्पलेक्स के इनडोर स्टेडियम में खेले जा रहे हैं। छत्तीसगढ ने पहले दिन से अपना विजय अभियान शुरू  कर  दिया था। छत्तीसगढ़ ने लीग के पहले मुकाबले में मणिपुर को 28-22 से पराजित किया था। लीग  के दूसरे  मैच में छत्तीसगढ़ ने हरियाणा को हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई थी। इसके बाद टीम ने पूल में नंबर वने रहने के लिए खिताब की दावेदार महाराष्ट्र को 32-22 अंक से पराजित कर अपनी धाक जमा दी थी। पूल में नंबर वन छत्तीसगढ़ की सेमीफाइनल में मेजबान झारखंड के साथ भिड़ंत हुई। यह मैच काफी रोमांचक और संघर्षपूर्ण रहा। इस मैच में छत्तीसगढ़ ने 33-16 से जीत हासिल कर फाइनल में प्रवेश कर  लिया। छत्तीसगढ़ की अनिता राव ने छह, अनामिका और  करिश्मा साहूू ने पांच-पांच  और माधवी ने चार अंक  बनाए। छत्तीसगढ़ का फाइनल में महाराष्ट्र और दिल्ली के बीच खेले जाने वाले मैच से होगा।
छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ  के सचिव बशीर अहमद खान के मुताबिक टीम ने काफी अच्छे खेल का प्रदर्शन किया और हमें ऐसे ही खेल की उम्मीद थी। राज्य के लिए यह गौरव का विषय है कि हमने हैंडबाल में भी पदक तय कर लिया। श्री खान छत्तीसगढ़ हैंडबाल संघ के भी सचिव हैं और वे कहते  हैं कि हम स्वर्ण पदक हासिल करेंगे। छत्तीसगढ़ को पुरुष टीम  से भी पदक की काफी उम्मीद थी  लेकिन पुरुष टीम ने उतना बेहतर प्रदर्शन नहीं किया जितना नेशनल गेम्स के लिए जरूरी  होता  है। पुरुष वर्र्ग में हालांकि छत्तीसगढ़ ने पहले  लीग मैच में जम्मू-कश्मीर को 17-11 से हराकर विजय अभियान शुरू किया था। लेकिन इसके बाद के मुकाबलों में पराजय का सामना करना पड़ा। दिल्ली  से दो गोल से पराजय के बाद पंजाब  से 31-27 गोल से पराजय का सामना करना पड़ा। छत्तीसगढ़ को पदक की दौड़ में बने रहने के लिए यह अहम मुकाबला जीतना था लेकिन इसे हारकर टीम दौड़ से बाहर हो गई। छत्तीसगढ़ की  पुरुष हैंडबाल टीम में  फिरोज अहमद खान, बीनू वी, फाजिल अहमद खान, ज्योति कुमार, अनिल कुमार निर्मलकर, सह्णय्यद जफर हुसह्णन, कुनाल, (सभी दुर्ग जिला सीअईएसएफ), विश्वजीत , प्रेम कुमार, अनिल कुमार (बिलासपुर रेलवे), सलमान खान, संजीव, योगेश, राजेश  कुमार, अनिल कुमार कौशिक, (सभी दुर्ग जिला), चीफ कोच : सुरेश कुमार, सहायक कोच अमरनाथ सिंह, मह्णनेजर आलोक दुबे शामिल थे।
राज्य की महिला टीम 
श्रीमती अनिता राव, अनामिका मुखर्जी, वेंकट लक्ष्मी, डी माधवी, श्रीमती शबनम फिरोज अंसारी, निश पाटिल, मति मुरमु (सभी बिलासपुर रेलवे), करिश्मा साहू, श्रीमती जूलियट विनय, दुर्गा तिवारी, रूपा साह, रीना यादव (सभी दुर्ग जिला), निधि जायसवाल (महासमुंद), चित्तेश्वरी ध्रुव (रायपुर),संध्या ध्रुव बिलासपुरसीमा पाठक, सावित्री मंडावी, कोच शेख मौला, बीआर दश, मैनेजर उमेश सिंह।
सर्वाधिक पदक निशानेबाजी में
झारखंड नेशनल गेम्स में सर्वाधिक  तीन  पदक निशानेबाजी में (दो स्वर्ण, एक कांस्य) छत्तीसगढ़ को मिले  हैं। जाहिर है कि यदि  निशानेबाजी में इतने पदक नहीं मिलते तो छत्तीसगढ़ पिछले नेशनल  गेम्स का रिकार्ड नहीं तोड़ पाता। हमें चार पदकों पर ही संतोष करना पड़ता। निशानेबाजी के अलावा छत्तीसगढ़ ने कराते, बास्केटबाल और कुश्ती में पदक हासिल  किए हैं। राज्य को बास्केटबाल से पदक की उम्मीदें पहले से थी। लेकिन कराते और कुश्ती जैसे खेलों में उम्मीद नहीं थी।
कांस्य पदक से चूक गईं अनिता
वेटलिफ्टिंग में छत्तीसगढ़ को दल्लीराजहरा की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अनिता  शिंदे  से  पदक की  काफी उम्मीदें थी  लेकिन तीन किलोग्राम वजन ज्यादा  होने से अनिता कांस्य पदक से चूक गईं। अनिता ने 69 किलोग्राम वजन वर्ग में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। झारखंड की प्रतिमा पहले और दिल्ली  की कृष्णा दूसरे स्थान पर रहीं। कांस्य पदक के लिए अनिता ने 171 किलोग्राम वजन उठाया। इतना ही वजन उड़ीसा की सीता जेना ने भी उठाया। लेकिन बाडी वेट में अनिता मार  खा गईं। अनिता का तीन किलो वजन ज्यादा था जिससे वे कांस्य की दावेदार नहीं बन सकीं।
 बकअप छत्तीसगढ़, टूट गया  पुराना रिकार्ड
राज्य निर्माण के इस एक दशक में छत्तीसगढ़ ने अब तक चार बार राष्ट्रीय खेलो ंमें हिस्सा लिया है। राज्य बनते  ही सबसे पहले छत्तीसगढ़ ने   पंजाब  के राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लिया था। नया राज्य होने की वजह से छत्तीसगढ़ को टोकन इंट्री मिली थी और  राज्य ने तीन  पदक हासिल किए थे। इसके बाद छत्तीसगढ़ ने 2002 में हैदराबाद के राष्ट्रीय खेलों में हिस्सा लिया था। हैदराबाद में राज्य को पांच  पदक मिले थे। इसके चार साल  बाद वर्ष 2007 में छत्तीसगढ़ ने असम के 33वें राष्ट्रीय खेलों में छह पदक हासिल किए थे। इसमें   तीन स्वर्ण और  तीन रजत पदक शमिल थे। दो  स्वर्ण पदक टीम गेम में हैंडबाल और नेटबाल की टीम ने दिलाए थे।
बास्केटबाल में रजत पदक  मिला था। इसके अलावा जूडो में रीना सााहू ने, वेटलिफ्टिंग में रुस्तम सारंग ने रजत पदक हासिल  किए थे।  एक रजत पदक शूटिंग  में मिला था। झारखंड  के राष्ट्रीय खेलों में भी छत्तीसगढ़ के खिलाड़ियों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। राज्य को सबसे पहला पदक अंबर  सिंह भारद्वाज ने कराते में दिलाया। इसके बाद पीपी सिंग, बाबा बेदी, मेराज खान ने शूटिंग में पदक हासिल किया। राज्य को पांचवा पदक बास्केटबाल की टीम ने दिलााया जो रजत पदक था। राज्य को छठा  पदक सीआईएसएफ के आनंद ने कुश्ती में दिलाया। इसके बाद छत्तीसगढ़ की महिला हैंडबाल टीम ने सातवां पदक तय कर लिया। छत्तीसगढ़ की टीम  यदि  स्वर्ण पदक हासिल करती है तो  पदकों की संख्या चार स्वर्ण, दो  रजत व एक कांस्य हो  जाएगी। टीम को  रजत पदक  मिलने की स्थिति में तीन स्वर्ण, तीन  रजत और एक कांस्य पदक की संख्या होगी।
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छत्तीसगढ़ को सेवाएं देने तैयार हैं लिम्बाराम
लिम्बा राम 
जमशेदपुर. देश के ख्यातिप्राप्त तीरंदाज और ओलंपियन लिम्बाराम छत्तीसगढ़ को अपनी सेवाएं देने को तैयार हैं लेकिन इसके लिए उन्हें अच्छे प्रस्ताव का इंतजार है। राजस्थान के जयपुर में साई हास्टल के कोच और ओलंपियन लिम्बाराम ने गुरुवार  को छत्तीसगढ़ के पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि करीब  चार साल पहले जब  वे राजधानी रायपुर आए थे राज्य तीरंदाजी संघ के पदाधिकारियों के साथ मौखिक  चर्चा हुई थी लेकिन लिखित में कोई प्रस्ताव नहीं मिला। यदि रायपुर में आरचरी एकेडमी खुलती है तो वे अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार  हैं। वे चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ के युवा भी इस खेल में आगे आएं। लिम्बाराम ने कहा कि देश में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कोई कमी नहीं  है, जरूरत  उन्हें आगे बढ़ाने की है। उन्होंन कहा कि आज भी खिलाड़ियों को बेहतर उपकरण नहीं मिल पाते। देश के खिलाड़ी विदेशों में बनने वाले खेल उपकरणों पर निर्भर करते हैं जबकि अपने ही  देश में युवाओं को आरचरी के उपकरण बनाने के लिए प्रयास  करना चाहिए। इसके लिए जरूर है कि स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी खुल जाए जिससे खेलों का विकास हो सके। राजस्थान  के उदयपुर  में सरादित गांव के रहने वाले लिम्बाराम ने अपने संघर्षों के दिनों को भी याद किया और बतायाा कि जब वे 12 से 13 साल  के तब उनके पिता का निधन हो गया था और परिवार की जवाबदारी उन पर आ गई थी। खेत में काम करने के अलावा उन्होंने कारखाने में भी काम किया। लिम्बा ने बताया कि उन्होंने भूख और गरीबी करीब से  देखी है और वे जानते हैं इसका दर्द क्या होता है। लिम्बा बताते हैं कि कई दिन तक उन्हें और उनके परिवार को भूखे रहना पड़ता था। वे बताते हैं कि उनके पिता तीर-कमान बनाते थे और उनका यह परंपरागत काम भी था। वे अपने हाथ से बनाए तीर-कमान का उपयोग करते थे। जनवरी 1987 में चित्तौड़ में साई हास्टल में प्रवेश के लिए तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था।   इसमें खजूर पर निशाना लगाना था और उन्होंने सटीक निशाना लगाया। उनका चयन साई हास्टल दिल्ली के लिए किया गया। दिल्ली  में उन्होंने देखा कि झारखंड के ही कई तीरंदाज आधुनिक तीर-कमान से अभ्यास कर  रहे हैं। यह देखकर वे भी हैरत मे ंपड़ गए क्योंकि यह उनके लिए नया था। तब मन में आया कि वे भी सटीक निशाना लगा सकते हैं। लिम्बा ने बताया कि इसके बाद 1987 में ही बेंगलूर की जूनियर नेशनल आरचरी चैंपियनशिप में पहली बार  हिस्सा लिया और 1988 में उनका चयन ओलंपिक के लिए भारतीय टीम में किया गया। इसके बाद उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में देश का प्रतिनिधित्व किया व कई कीर्तिमान भी बनाए। लिम्बाराम को इस बात की पूरी उम्मीद है कि 2012 के लंदन ओलंपिक में भारतीय तीरंदाज पदक  हासिल करेंगे और जिस तरह से भारतीय तीरंदाजों ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में पदक  हासिल किए हैं इससे  लगता है कि भारतीय खिलाड़ी इतिहास रचेंगे। लिम्बा  का मानना है कि मौजूदा दौर में प्रतियोगिता बढ़ी  है, विदेशों में सालभर प्रतियोगिताएं होती रहती  हैं। भारत  में भी तीरंदाजी की प्रतियोगिताओं की  बढ़ाने पर  जोर  देना  होगा। इसके लिए भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी उपकरणों की जरूरत है। विदेशी खिलाड़ी  हर दूसरी अंतरराष्ट्रीय  स्पर्धा के बाद अपना उपकरण बदल देते हैं। भारतीय खिलाड़ी कई बड़ी स्पर्धाएं एक ही उपकरण में निकाल देते हैं। इसके लिए एसोसिएशन व सरकार को मिलकर प्रयास करने पड़ेंगे। लिम्बा का यह भी कहना है कि इस खेल में आदिवासियों को आगे बढ़ाना चाहिए क्योंकि यह उनके खून में है। इसकी एक वजह यह भी है कि वे ज्यादातर किसी एक ही बात पर ध्यान देते हैं और उनका ध्यान ज्यादा  लगता है। तीरंदाजी में बेहतरीन के लिए यदि ऐसे खिलाड़ियों को एकेडमी में लाया जाए तो वे बेहतर प्रदर्शन कर सकते  हैं।
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दीपिका की सनसनीखेज हार
प्रतिभा, सुनीता, अभिषेक को स्वर्ण
जमशेदपुर. 34 वें राष्ट्रीय खेलों की तीरंदाजी की रिकर्व व्यक्तिगत स्पर्धा के महिला फाइनल में आज असम की प्रतिभा ने ओलंपिक में भारत की सबसे बड़ी पदक उम्मीद समझी जा रही कामनवेल्थ की (दोहरा स्वर्ण) विजेता दीपिका कुमारी को 6-4 से हरा कर सनसनी मचाते हुए स्वर्ण पदक जीत लिया। 
 पुरूष रिकर्व के फाइनल में पश्चिम बंगाल के एम आर तिर्की ने सेना के विश्वास को 6-2 से हरा कर स्वर्ण जीता। कम्पाउंड शैली के पुरूष फाइनल में दिल्ली के अभिषेक वर्मा ने आंध्र प्रदेश के रितुल चटर्जी को कड़े संघर्ष में टाई ब्रेकर के जरिए 6-6 (10-9) से हरा कर तथा महिला फाइनल में पंजाब की सुनीता रानी ने आंध्र की वी ज्योति सुरेखा को 7-3 से हरा कर स्वर्ण जीत लिए।  रिकर्व महिला स्पर्धा का कांस्य पदक झारखंड की सीमा वर्मा को, पुरूष स्पर्धा का कांस्य असम के संजय बोरो को, कंम्पाउंड पुरूष वर्ग का कांस्य सेना के सी श्रीधर को तथा महिला कांस्य झारखंड की नमिता यादव को मिला।  ज्ञातव्य है कि कई बड़े उलटफेर में राष्टÑमंडल खेलों के स्वर्ण विजेता राहुल बनर्जी, कांस्य धारक जयंत तालुकदार, तरूणदीप राय, मंगल सिंह चांपिया तथा नामी गिरामी महिला तीरंदाजी झानू हांसदा समेत कई बड़े (स्टार) प्रतियोगिता से पहले ही बाहर हो गए थे। उम्मीदों के विपरित सर्वाधिक स्टार वाले मेजबान झारखंड को एक भी स्वर्ण नहीं मिला1 उसे एक रजत और दो कांस्य से ही संतोष करना पड़ा।
जयंत, तरुणदीप समेत कई और सितारे बाहर
जमशेदपुर. 34 वें राष्ट्रीय खेलों की तीरंदाजी की व्यक्तिगत स्पर्धा में आज दूसरे दिन भी कई बड़े उलटफेर हुए जिसमें राष्टमंडल खेलों के पदक विजेता जयंत तालुकदार, तरूणदीप राय, मंगल सिंह चांपिया तथा नामी गिरामी महिला तीरंदाजी झानू हांसदा समेत कई बड़े (स्टार) प्रतियोगिता से बाहर हो गए।  इससे मेजबान झारखंड की पदक उम्मीदों को करारा झटका लगा जिसके चार तीरंदाज में से केवल एक ही फाइनल में पहुंच सके।
 रिकर्व पुरूष वर्ग के क्वार्टर फाइनल में झारखंड के जयंत को उनके ही राज्य के अंतराष्टÑीय खिलाड़ी पवन खालको ने 7-1 से पीट दिया हालांकि खालको भी सेमीफाइनल में हार गये1 राष्टÑीय रिकार्डधारी सेना के तरूणदीप राय को असम के संजय बोरो ने प्री राउंड में 4-2 से हराया जबकि झारखंड के अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज मंगल सिंह चांपिया को उत्तर प्रदेश के पटनायक ने 4-2 से पराजित किया। कंपाउंड महिला वर्ग में पदक की सबसे मजबूत दावेदार झारखंड की झानू हांसदा को क्वार्टर फाइनल में पंजाब की सुनीता रानी ने 6-2 से हरा दिया। अंतराष्टÑीय खिलाड़ी झारखंड की भाग्यवती चानू और मंजूधा सोय भी हार गई।  कल पहले दिन राष्टÑमंडल खेलों के स्वर्ण विजेता बंगाल के राहुल बनर्जी, (दोहरा) रिकार्ड बनाने वाले कामनवेल्थ कांस्य विजेता सेना के सीएच जिग्नास तथा छत्तीसगढ़ की ओलंपियन महिला तीरंदाज वी. परिणिता शुरूआती चक्र में ही बाहर हो गए थे।

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